Sunday, February 2, 2020

मंगलाचरण


| श्रीरामसमर्थ ||

|| श्रीमत् दासबोध ||

समास पहिला : मंगलाचरण || १.१ ||

॥श्रीरामसमर्थ॥
श्रोते पुसती कोण ग्रंथ | काय बोलिलें
जी येथ | श्रवण केलियानें प्राप्त | काय आहे ||१||



ग्रन्था नाम दासबोध | गुरुशिष्यांचा संवाद |
येथ  बोलिला  विशद  |  भक्तिमार्ग  ||२||



नवविधा भक्ति  आणि ज्ञान | बोलिलें वैराग्याचें
लक्षण | बहुधा अध्यात्मनिरोपण | निरोपिलें ||३||



भक्तिचेन योगें देव | निश्चयें पावती मानव |
ऐसा  आहे  अभिप्राव  |  ईये  ग्रन्थीं ||४||



मुख्य भक्तीचा निश्चयो | शुद्ध ज्ञानाचा निश्चयो |
आत्मस्थितीचा  निश्चयो | बोलिला  असे ||५||



शुद्ध उपदेशाचा निश्चयो | सायोज्यमुक्तीचा निश्चयो |
मोक्षप्राप्तीचा  निश्चयो  |  बोलिला  असे ||६||



शुद्ध स्वरूपाचा निश्चयो | विदेहस्थितीचा निश्चयो |
अलिप्तपणाचा  निश्चयो | बोलिला  असे ||७||



मुख्य देवाचा निश्चयो | मुख्य भक्ताचा निश्चयो |
जीवशिवाचा  निश्चयो | बोलिला  असे  ||८||



मुख्य ब्रह्माचा निश्चयो | नाना मतांचा निश्चयो |
आपण कोण हा निश्चयो  |  बोलिला असे ||९||



मुख्य उपासनालक्षण | नाना कवित्वलक्षण |
नाना  चातुर्यलक्षण  |  बोलिलें  असे ||१०||



मायोद्भवाचें लक्षण | पंचभूतांचे  लक्षण |
कर्ता कोण हें लक्षण | बोलिलें असे ||११||



नाना किंत निवारिले | नाना संशयो छेदिले |
नाना  आशंका  फेडिले | नाना  प्रश्न  ||१२||



ऐसें बहुधा निरोपिलें | ग्रन्थगर्भी जें बोलिलें |
तें अवघेंचि अनुवादलें | न वचे किं कदा ||१३||



तथापि अवघा दासबोध | दशक फोडून केला विशद |
जे जे दशकींचा अनुवाद | ते ते दशकीं बोलिला ||१४||



नाना ग्रन्थांच्या संमती | उपनिषदें वेदांत श्रुती |
आणि  मुख्य  आत्मप्रचीती | शास्त्रेंसहित ||१५||



नाना संमतीअन्वये |  म्हणौनि मिथ्या म्हणतां नये |
तथापि  हें  अनुभवासि  ये | प्रत्यक्ष  आतां  ||१६||



मत्सरें यासी  मिथ्या  म्हणती | तरी अवघेचि ग्रन्थ
उछेदती | नाना ग्रन्थांच्या संमती | भगवद्वाक्यें ||१७||



शिवगीता  रामगीता | गुरुगीता  गर्भगीता |
उत्तरगीता अवधूतगीता | वेद आणी वेदांत ||१८||



भगवद्‍गीता ब्रह्मगीता | हंसगीता पांडवगीता |
गणेशगीता येमगीता | उपनिषदें  भागवत ||१९||



इत्यादिक  नाना  ग्रन्थ | संमतीस बोलिले
येथ | भगवद्वाक्ये येथार्थ | निश्चयेंसीं ||२०||



भगवद्वचनीं अविश्वासे | ऐसा कोण पतित असे | 
भगवद्वाक्याविरहित नसे | बोलणें येथीचें ||२१||



पूर्णग्रन्थ पाहिल्याविण | उगाच ठेवी जो दूषण |
तो  दुरात्मा  दुराभिमान | मत्सरें  करी  ||२२||



अभिमानें उठे मत्सर | मत्सरें ये तिरस्कार |
पुढें  क्रोधाचा  विकार | प्रबळे  बळें ||२३||



ऐसा अंतरी नासला | कामक्रोधें खवळला |
अहंभावें  पालटला | प्रत्यक्ष  दिसे  ||२४||



कामक्रोधें लिथाडिला | तो कैसा म्हणावा भला |
अमृत  सेवितांच  पावला | मृत्य  राहो ||२५||



आतां असो हें बोलणें | अधिकारासारिखें घेणें |
परंतु  अभिमान  त्यागणें | हें उत्तमोत्तम ||२६||



मागां श्रोतीं आक्षेपिलें | जी ये ग्रन्थीं काय बोलिलें |
तें  सकळहि  निरोपिलें  |  संकळित  मार्गे ||२७||



आतां  श्रवण  केलियाचें फळ | क्रिया पालटे
तत्काळ | तुटे संशयाचें मूळ | येकसरां ||२८||



मार्ग सांपडे सुगम | नलगे साधन दुर्गम |
सायोज्यमुक्तीचें  वर्म | ठाइं  पडें  ||२९||



नासे अज्ञान  दुःख भ्रांती | शीघ्रचि येथें ज्ञान-
प्राप्ती |  ऐसी आहे फळश्रुती | ईये ग्रन्थीं ||३०||



योगियांचे परम भाग्य | आंगीं बाणें तें वैराग्य |
चातुर्य  कळे  यथायोग्य | विवेकेंसहित  ||३१||



भ्रांत अवगुणी अवलक्षण | तेचि होती सुलक्षण |
धूर्त तार्किक विचक्षण | समयो जाणती ||३२||



आळसी तेचि साक्षपी होती | पापी तेचि प्रस्तावती |
निंदक  तेचि  वंदूं  लागती | भक्तिमार्गासी  ||३३||



बद्धची होती मुमुक्ष | मूर्ख होती अति दक्ष |
अभक्तची  पावती मोक्ष | भक्तिमार्गें  ||३४||



नाना दोष ते नासती | पतित तेचि पावन होती |
प्राणी  पावे  उत्तम  गती | श्रवणमात्रें  ||३५||



नाना धोकें देहबुद्धीचे | नाना किंत संदेहाचे |
नाना  उद्वेग संसाराचे | नासती श्रवणें ||३६||



ऐसी याची फलश्रुती | श्रवणें चुके अधोगती |
मनास  होय  विश्रांती  |  समाधान  ||३७||



जयाचा भावार्थ जैसा | तयास  लाभ  तैसा |
मत्सर धरी जो पुंसा | तयास तेंचि प्राप्त ||३८||



इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे
मंगलाचरणनाम समास पहिला || १.१ ||





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