| श्रीरामसमर्थ ||
समास पहिला : मंगलाचरण || १.१ ||
॥श्रीरामसमर्थ॥
श्रोते पुसती कोण ग्रंथ | काय बोलिलें
जी येथ | श्रवण केलियानें प्राप्त | काय आहे ||१||
ग्रन्था नाम दासबोध | गुरुशिष्यांचा संवाद |
येथ बोलिला विशद | भक्तिमार्ग ||२||
नवविधा भक्ति आणि ज्ञान | बोलिलें वैराग्याचें
लक्षण | बहुधा अध्यात्मनिरोपण | निरोपिलें ||३||
भक्तिचेन योगें देव | निश्चयें पावती मानव |
ऐसा आहे अभिप्राव | ईये ग्रन्थीं ||४||
मुख्य भक्तीचा निश्चयो | शुद्ध ज्ञानाचा निश्चयो |
आत्मस्थितीचा निश्चयो | बोलिला असे ||५||
शुद्ध उपदेशाचा निश्चयो | सायोज्यमुक्तीचा निश्चयो |
मोक्षप्राप्तीचा निश्चयो | बोलिला असे ||६||
शुद्ध स्वरूपाचा निश्चयो | विदेहस्थितीचा निश्चयो |
अलिप्तपणाचा निश्चयो | बोलिला असे ||७||
मुख्य देवाचा निश्चयो | मुख्य भक्ताचा निश्चयो |
जीवशिवाचा निश्चयो | बोलिला असे ||८||
मुख्य ब्रह्माचा निश्चयो | नाना मतांचा निश्चयो |
आपण कोण हा निश्चयो | बोलिला असे ||९||
मुख्य उपासनालक्षण | नाना कवित्वलक्षण |
नाना चातुर्यलक्षण | बोलिलें असे ||१०||
मायोद्भवाचें लक्षण | पंचभूतांचे लक्षण |
कर्ता कोण हें लक्षण | बोलिलें असे ||११||
नाना किंत निवारिले | नाना संशयो छेदिले |
नाना आशंका फेडिले | नाना प्रश्न ||१२||
ऐसें बहुधा निरोपिलें | ग्रन्थगर्भी जें बोलिलें |
तें अवघेंचि अनुवादलें | न वचे किं कदा ||१३||
तथापि अवघा दासबोध | दशक फोडून केला विशद |
जे जे दशकींचा अनुवाद | ते ते दशकीं बोलिला ||१४||
नाना ग्रन्थांच्या संमती | उपनिषदें वेदांत श्रुती |
आणि मुख्य आत्मप्रचीती | शास्त्रेंसहित ||१५||
नाना संमतीअन्वये | म्हणौनि मिथ्या म्हणतां नये |
तथापि हें अनुभवासि ये | प्रत्यक्ष आतां ||१६||
मत्सरें यासी मिथ्या म्हणती | तरी अवघेचि ग्रन्थ
उछेदती | नाना ग्रन्थांच्या संमती | भगवद्वाक्यें ||१७||
शिवगीता रामगीता | गुरुगीता गर्भगीता |
उत्तरगीता अवधूतगीता | वेद आणी वेदांत ||१८||
भगवद्गीता ब्रह्मगीता | हंसगीता पांडवगीता |
गणेशगीता येमगीता | उपनिषदें भागवत ||१९||
इत्यादिक नाना ग्रन्थ | संमतीस बोलिले
येथ | भगवद्वाक्ये येथार्थ | निश्चयेंसीं ||२०||
भगवद्वचनीं अविश्वासे | ऐसा कोण पतित असे |
भगवद्वाक्याविरहित नसे | बोलणें येथीचें ||२१||
पूर्णग्रन्थ पाहिल्याविण | उगाच ठेवी जो दूषण |
तो दुरात्मा दुराभिमान | मत्सरें करी ||२२||
अभिमानें उठे मत्सर | मत्सरें ये तिरस्कार |
पुढें क्रोधाचा विकार | प्रबळे बळें ||२३||
ऐसा अंतरी नासला | कामक्रोधें खवळला |
अहंभावें पालटला | प्रत्यक्ष दिसे ||२४||
कामक्रोधें लिथाडिला | तो कैसा म्हणावा भला |
अमृत सेवितांच पावला | मृत्य राहो ||२५||
आतां असो हें बोलणें | अधिकारासारिखें घेणें |
परंतु अभिमान त्यागणें | हें उत्तमोत्तम ||२६||
मागां श्रोतीं आक्षेपिलें | जी ये ग्रन्थीं काय बोलिलें |
तें सकळहि निरोपिलें | संकळित मार्गे ||२७||
आतां श्रवण केलियाचें फळ | क्रिया पालटे
तत्काळ | तुटे संशयाचें मूळ | येकसरां ||२८||
मार्ग सांपडे सुगम | नलगे साधन दुर्गम |
सायोज्यमुक्तीचें वर्म | ठाइं पडें ||२९||
नासे अज्ञान दुःख भ्रांती | शीघ्रचि येथें ज्ञान-
प्राप्ती | ऐसी आहे फळश्रुती | ईये ग्रन्थीं ||३०||
योगियांचे परम भाग्य | आंगीं बाणें तें वैराग्य |
चातुर्य कळे यथायोग्य | विवेकेंसहित ||३१||
भ्रांत अवगुणी अवलक्षण | तेचि होती सुलक्षण |
धूर्त तार्किक विचक्षण | समयो जाणती ||३२||
आळसी तेचि साक्षपी होती | पापी तेचि प्रस्तावती |
निंदक तेचि वंदूं लागती | भक्तिमार्गासी ||३३||
बद्धची होती मुमुक्ष | मूर्ख होती अति दक्ष |
अभक्तची पावती मोक्ष | भक्तिमार्गें ||३४||
नाना दोष ते नासती | पतित तेचि पावन होती |
प्राणी पावे उत्तम गती | श्रवणमात्रें ||३५||
नाना धोकें देहबुद्धीचे | नाना किंत संदेहाचे |
नाना उद्वेग संसाराचे | नासती श्रवणें ||३६||
ऐसी याची फलश्रुती | श्रवणें चुके अधोगती |
मनास होय विश्रांती | समाधान ||३७||
जयाचा भावार्थ जैसा | तयास लाभ तैसा |
मत्सर धरी जो पुंसा | तयास तेंचि प्राप्त ||३८||
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे
मंगलाचरणनाम समास पहिला || १.१ ||
Share with your friend and family :
0 comments:
Post a Comment